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Tuesday, November 30, 2010

''साहसी लाली ''बाल कहानी

बात उस समय कि है जब लाली बहुत छोटी थी और उस समय वह अन्य बच्चों से अलग सोच रखती थी .सारे बच्चे जब पोशम्पा, नदी -पहाड़ ,और लुका-छिपी के खेल खेला करते थे,तब लाली को वो खेल उबावूलगते थे .वो हमेशा वीरता के खेल खेलना पसंद करती थी.इसके अलावा रेत में खेलना उसे बहुत भाता था.खासकर रेत में वो महल बनाया करती थी.वह सपना भी देखती तो वो महल -दुमहले का होता था.महल कोई मामूली महल न था,उसमे ऊँची-ऊँची मीनारें और गोल-गोल गुम्बज हुआ करते थे.लाली जब अपने सपने के बारेमें अपने साथियों  को बताती तो वे लोग लाली की खूब खिल्ली  उड़ाया करते थे.इसके अलावा लाली का दूसरा शौक था हथियार चलाना.
                           
हथियार चलाना वो बड़ी लगन और मेहनत के साथ अपने पिता से सीख रही थी.तलवार,
बरछी,भाला,और न जाने कई शस्त्र चलाने में वह निपुण हो गई थी.एक दिन जब लाली बच्चों के साथ खेल रही थी.तो किसीके शोर का स्वर उसके कानों में पड़ा''बचाओ -बचाओ शेर आया,शेर आया'' जैसे ही लाली ने सुना बिना कुछ सोचे-समझे शेर के सामने पहुँच गई.और उसने देखा की शेर दीनू के सामने दौड़ा चला जा रहा था.दीनू को धक्का देकर लाली ने बिना कुछ सोचे-समझे शेर के सामने छलांग लगा दी.उसके साथ के बच्चे और दीनू लाली को इस अवस्था  में देखकर डर से
कांप उठे और उन्होंने लाली को शेर के पास जाने से मना भी किया.लेकिन लाली कहाँ मानने वाली थी? उसने बड़ी ही चालाकी,सूझ-बुझ और निडरता के साथ शेर का मुकाबला किया और उसे घायल कर मार गिराया.उसके बाल सखागन लाली की बहादुरी देख दंग रह गए. उन्होंने चिल्ला-चिल्ला कर सभी गाव वालों को इकट्ठा कर लाली की बहादुरी के किस्से सुनाये.इस तरह गावं  की भोली-भाली लेकिन निडर लाली के चर्चे गाव के बहार दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गए.और हों भी क्यूँ ना,लाली ने काम भी तो बड़ी बहादुरी का किया था.शेर को इतनी कम उम्र में मार गिरना कोई मजाक नहीं था.
                              इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की विपत्ति के समय निर्भीक होकर समझदारी से काम लेना चाहिए.परिस्थिति के अनुसार दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए.एक लड़की चाहे तो आत्मसुरक्षा के लिए शस्त्र चलाना सीख सकती हैऔर उसका इस्तेमाल भी कर सकती है.
                 ज़रूरत पड़ने पर दूसरों का और स्वयं का बचाव कर सकती है.बस आवशकता है सच्चे संकल्प की .




                          

Wednesday, November 3, 2010

शुभकामना सन्देश

सभी मित्रों को दीप पर्व कि हार्दिक शुभेच्छा.
            द्वारा -प्रीतिप्रवीन
                  

Tuesday, October 26, 2010

बिटिया

बिटिया के आगमन ने आज हर्षित कर डाला है,
बेरंग से इस जीवन को, इक सुंदर रंग में ढला है.
बिटिया  के नन्हे आँखों ने,आज चमक में ढाला है 
धूमिल होते सपने को, आज सच  कर डाला है.
बिटिया के नन्हे क़दमों ने,राह सुगम कर डाला है
अवरुद्ध होते मार्ग को,आज सरल कर डाला है.
बिटिया के नन्हे हाथों ने, आज दुआ कर डाला है
विध्वंसक होते बापू को,आज साधू कर डाला है.
बिटिया के नन्हे मुख ने,आज ब्रम्हनाद में ढाला है
कटु होते वचनोंको,आज मिश्री कर डाला है.
बिटिया के आगमन ने,आज हर्षित कर डाला है.
बेरंग से इस जीवन को,इक सुंदर रंग में ढाला है.

Monday, October 25, 2010

ओम

मन रे तू कहे ना ओम जपे ..२
ओम जपन से..२
मन विचलित ना होय
मन रे ..२
ओम शब्द में ब्रह्म निहित है
ओम शब्द में स्वयं निहित है
ओम करे उद्धार
मन रे..२
ओम शब्द में प्रकृति निहित है
ओम शब्द में पुरुष निहित
ओम करे विश्वास
मन रे..२
ओम शब्द में भाव निहित है
ओम शब्द में भक्ति निहित है
ओम करे चमक्तकार
मन रे..२
ओम शब्द में ईश निहित है
ओम शब्द में विश्व निहित है
ओम करे निर्माण
मन रे..२
ओम शब्द में ध्यान निहित
ओम शब्द में धरम निहित है
ओम करे कल्याण
मन रे तू कहे ना ओम जपे

दिल की बातें: शोहरत की धूल

दिल की बातें: शोहरत की धूल

Sunday, September 26, 2010

अगर मैं घुंघरू होती माँ ?

अगर मैं घुंघरू होती माँ,छन-छन ,छन-छन करती माँ
पल-पल,पल-पल आनंद मैं भरती माँ
नाच के पेट भरती माँ,दुःख में भी मैं हंसती माँ
जब जी चाहे नचती माँ,दिल में सबके बसती माँ
तन का श्रृंगार मैं करती माँ,दरउसके जा मैं रहती माँ
घर सबके मन में करती माँ,सब लोगों को मैं हरती माँ
नट सम्राट के पग में सजती माँ,तुम देख मुझे खुद हंसती माँ
अगर मैं घुंघरू होती माँ,छन-छन,छन-छन करती माँ
पल-पल,पल-पल आनंद भरती माँ
अगर मैं घुंघरू होती माँ, अगर मैं घुंघरू होती माँ

Thursday, September 23, 2010

जानवर का फ़र्ज़

दीनू ने बैलों की जोड़ी से कहा
आज जोतना है ,मालिक का खेत
कमर कसकर तैयार रहो
चारा खाकर भरपेट चलो
वहां न चलेगी अपनी माया
क्यूंकि उसपर मोटी काया
बैलों ने आपस में देखा
और देखकर किया विचार
आज करेंगे पूरा काम
नहीं करेंगे हम आराम
दीनू को देंगे उपहार
अपनी जोड़ी का स्नेह-प्यार
कभी ना छोड़ेंगे हम साथ
जानवर हुए तो क्या हुआ ?
शैतान को सबक सिखायेंगे
दीनू के खेत को बचायेंगे
शैतान से मुक्त कराएँगे
फिर मोती फसल उगायेंगे
खेत को चमन बनायेंगे
क़र्ज़ से मुक्त कराएँगे
जानवर का फ़र्ज़ निभाएंगे
इंसान को फिर बचायेंगे

Tuesday, September 21, 2010

लोरी -निंदिया

कभी-कभी निंदिया पंछी लगे ,दूर-दूर गगन में उड़ती चले
कल-कल कलरव करती रहे ,पल-पल आनंद भरती चले
धीरे-धीरे निंदिया बादलों में छुपे ,छुप-छुप कर चंदा से बात करे
मंद-मंद गीत गुनगुनाती रहे ,हौले-हौले आगे बढ़ती चले
बार-बार निंदिया सपने बुने ,हंस-हंस कर रोंने लगे
नन्हे-नन्हे परों को फैलाया करे ,छोटे-छोटे बच्चों संग दाना चुगे
ऊँची-ऊँची निंदिया उड़ान भरे ,बड़े-बड़े बिछौने में खेला करे
कभी-कभी निंदिया पंछी लगे ,दूर-दूर गगन में उड़ती चले
कभी-कभी निंदिया पंछी लगे ,कभी-कभी निंदिया पंछी लगे

Sunday, September 19, 2010

गरबा ( भजन )

जय मा अम्बे, जय जगदम्बे ,जय मा अम्बे ,जय जगदम्बे .......२
म्हारा आँगन मा आवोजी मा ,आके दरस दिखाओ मा .............२
म्हारी विनती सुन लो शक्ति माता ,रानी मा .........२
भर दो म्हारी झोली ,शक्ति माता रानी मा
खाली झोली मैं जाऊ ना ........२
मैं गरबी नौ दिन रखूंगी ,डांडिया नौ दिन खेलूंगी
म्हारा आँगन मा आओजी  मा ,आके दरस दिखाओ मा .............२
म्हारी विनती सुन लो काली माता ,रानी मा ............२
भर दो म्हारा भंडार ,काली माता ,रानी मा
निर्धन ना रह जाऊ मा ..........२
मैं दर तेरे जोत जलौंगी ,जवारे बोती जाउंगी
म्हारा आँगन मा आओ जी मा ,आके दरस दिखाओ मा .............२
म्हारी विनती सुन लो शारदा माता ,रानी मा ...........२
भर दो सूनी मांग, शारदा माता, रानी मा
आज सुहागन बन जाऊ मैं ........२
मैं कन्या भोज करौंगी ,आरती करती जाउंगी
म्हारा आँगन मा आओ जी मा ,आके दरस दिखाओ मा ..............२
सुमीर जस गाती जाउंगी ,दरस तेरे पाके तर जाउंगी
म्हारा आँगन मा आओ जी मा ........2

Wednesday, September 15, 2010

खेल-खेल में ( बाल कविता )

खेल-खेल में हम पढेंगे ,अ ,आ, इ ,ई-ऐ, बी ,सी ,डी
खेल-खेल में हम गायेंगे ,सा,रे गा,मा,गीत,भजन
खेल-खेल में हम नाचेंगे ,कत्थक,मणिपुरी,भरतनाट्यम,मोहिनी अट्टम
खेल-खेल में हम लिखेंगे,कविता,निबंध ,कहानी,सुलेख
खेल-खेल में हम खायेंगे हलवा,पूरी,फल,मिठाई
खेल-खेल में हम सुनेगे ,गीता,कुरान,bybal ,गुरुग्रंथ
खेल-खेल में हम पूजेंगे ,मात-पिता ,ईश,गुरु
खेल -खेल में हम लड़ेंगे ,पोलिओ,कैंसर ,एड्स,पीलिया
खेल-खेल में हम मिटायेंगे,गरीबी,अशिक्षा, हिंसा,आतंक
खेल-खेल में हम पढ़ाएंगे,प्रेम,अहिंसा,एकता,भाईचारा
खेल-खेल में हम बचायेंगे,बिजली ,पेड़, पानी,धरोहर
खेल-खेल में रे बाबा खेल-खेल में  

Sunday, September 12, 2010

बारिश

गर्मी से बेहाल धरा ने नतमस्तक गुहार किया
तब प्रसन्ना  हो इन्द्रदेव ने  बरखा का आगाज़ किया
छोटी बड़ी सभी बूंदों ने बिखरा दी छटा निराली
सोंधी-सोंधी खुश्बू प्यारी फिर महकी इस धरती पे
फूल पेड़ पंछी फिर चहके ऋतुराज का दिल भी बहके
मस्त पवन फिर धीरे-धीरे बरखा का आलिंगन करके
अरसे से प्यासी धरा के आँचल में बूंदों को भरके
इठलाके-बलखाके झूमकर भीगे
बच्चे ,बूढ़े सभी जन भीगे
रंग-बिरंगी छतरियों संग भीगे
कागज़ कि किश्तियों संग भीगे
तन भी भीगे- मन भी भीगे
इन्द्रधनुषी रंग में सब भीगे
बरखा के आनंद में भीगे
भीगे जन फिर जी लें
भीगे जन फिर जी लें .

Wednesday, September 8, 2010

''स्लेट और बत्ती ''

स्लेट और बत्ती कि हुई लड़ाई
दोनों ने मिलकर कि खूब हाथापाई
स्लेट बोला क्यूँ इतराती हो
तुम्हें सब भूल चुके फिर भी बहलाती हो
बत्ती बोली क्यूँ भाव खाते हो
तुम्हें सब छोड़ चुके फिर भी नख्राते  हो
स्लेट बोला ग्रामीण परिवेश में कभी-कभी जी लेता हूँ
वरना तो मैं दिन भर रोता हूँ
बत्ती बोली मैं भी कहाँ सुख पाती हूँ
लिखने के लिए नहीं अब तो शो के काम आती हूँ
दोनों कि आपबीती सुन
रामू भोला यूँ बोला 
क्या बोला ???????
क्यूँ झगडा - लड़ाई बढ़ाते हो
multimedia के युग में देसी ढर्रा चलते हो
हवाई जहाज छोडकर साईकिल पर घुमाते हो

आशीष

ऐ मित्र !उठो सम्हलो जागो
चेहरे पर नवजीवन लाओ
जो छूट गया उसको छोडो
जो भूल गया उसको भूलो
होठों पर तान नई छेड़ो
मन में विश्वास नया बुनो
पथ की बाधाएं पर करो
जग में सदैव उन्नति करो
अपने हुनर का मान करो
वाणी सैयम से कार्य करो
पथ पर समहल  कर धन्य रहो
निराशाओं से खुद उबरो
आशाओं को साकार करो
अपने कम का अभिमान करो
इस पल को बेकार ना नष्ट करो
ऐ मित्र !आशीषों को स्वीकार करो
फिर नए नीड़ का निर्माण करो 1

Tuesday, September 7, 2010

ॐ साईं ताज

तेरे दर कि आबो हवा में एक जूनून सा है
बाबा कि इनायत में एक सुरूर सा है
दर तेरे जाके मैं मौला पुकारूँ शामो शेहेर
बाबा कि इजाज़त हो तो रहबर का दीदार करूँ
इजाज़त मांग के मौला से मुरादें पालूं
मुरादें पूरी कर देंगे शाहवली
बाबा कि इजाज़त हो तो कलमा पढ़ लूँ
कलमा पढ़ के खुदा का शुक्रिया कर लूँ
करम करने को तैयार हैं ताज्वली
तेरे दर कि आबो हवा में एक जूनून सा है
तेरे दर कि आबो हवा में एक शुरुर सा है 
बाबा कि इजाज़त हो तो सजदा कर लूँ
सजदे पे पीर कि नेकियत पा लूँ
जीवन के हर एक मोड़ पे साथ हैं पीरवली
तुम हमें छोड़ के जाओगे तो मर जायेंगे
करम इतना कर दो कि दिल बसा लो
दिल में बसने का हक देने को तैयार हैं ख्वाजवाली
तेरे दर कि आबो हवा में एक जूनून सा है
तेरेदर कि आबो हवा में एक शुरुर सा है .


    

Monday, September 6, 2010

बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद
भीतर तक भीगे आज
बहुत दिनों के बाद
जीकर पीलें आज
बहुत दिनों के बाद
चीखकर रोकें आज
बहुत दिनों के बाद
सीखकर साधें ज्ञान
बहुत दिनों के बाद
चोंककर जगे आज
बहुत दिनों के बाद
उठकर भागे आज
बहुत दिनों के बाद
मिलकर होलें साथ
बहुत दिनों के बाद
दिलों के आगे आज
नम्र होलें साथ
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद .

Sunday, September 5, 2010

मौन

पुष्प के मौन को ग्रहण करो
लाश के मौन से डरा करो
          मौन परों पर तैरते पंछियों से सीखो
          शमशान के मौन को साधो
क्यूंकि.......................
फूल का मौन फूल बनाएगा
लाश का मौन लाश बनाएगा
पंछियों का मौन पंछी बनाएगा
लेकिन ........................
शमशान का मौन साधक बनाएगा .

why we celebrate teachers day?

              All across the world, teachers day celebrations are undertaken to commemorate the teachers  for their efforts. By having celebrations on teachers day we convey the message that we care for our teachers. Celebrating teachers day is recognition of the devotion with which teachers undertake the responsbility of educating a child.
                September 5 is teachers day in INDIA. It is the birthday of second president of India an teacher Dr. Sarvapalli Radhakrishnan. When Dr. Radhakrishnan became the president of India in 1962, some of his students and friends approached him and requested him to allow them to celebrate 5th September, his birthday. In reply Dr. Radhakrishnan said, "Instead of celebrating my birthday separately, it would be my proud priviledge if September 5 is observed as" teachers day. 
                Teachers mold the lives 
                Teachers breakdown barriers.
                Teachers guide the path
                Teachers make the lession.
                Teachers light the lights. 
                Teachers resque hurting. 
                Teachers save us. 
                Whenever we need them they are always their.

Thursday, September 2, 2010

डांट

आज मम्मी की  डांट बहुत  याद आ रही है
आज मम्मी की गांठ बहुत याद आ रही है

डांट में छुपा होता था प्यार और दुलार 
गांठ में छुपा होता था त्याग और बलिदान

डांट में बसा होता था सबक और टसक
गांठ में बसा होता था मन और धन

डांट में छुपा होता था इकरार और इंकार
गांठ में छुपा होता था वर्तमान और भविष्य

आज मम्मी  डांट बहुत याद आती है
आज मम्मी की गांठ बहुत याद आती है

डांट में बसा होता था तर्क और वितर्क
गांठ में बसा होता था मान और उपमान

आज मम्मी की डांट बहुत याद आती है
आज मम्मी की गांठ बहुत याद आती है //

सूरज

सबसे पहले आता सूरज
कभी न जी चुराता सूरज 

जग को फिर महकता सूरज
खग को नित जगाता सूरज
नभ को रोज़ जगमगाता सूरज

सबसे पहले आता सूरज सूरज
कभी न जी चुराता सूरज

तन को खूब चमकता सूरज
मन को गति में लता सूरज
घन को दूर भगाता सूरज

सबसे पहले आता सूरज
कभी न जी चुराता सूरज

दुःख को चक्र बताता सूरज
सुख को फल बुलाता सूरज
मोक्षय का ध्यान कराता सूरज

सबसे पहले आता सूरज
कभी ना जी चुराता सूरज II

Wednesday, August 4, 2010

दो बूंद

दो बूंद जिंदगी की
        हमको भी दे दो यारों आज
लाल फीताशाही के इस देश में
        बूंद-बूंद पानी को तरसें - आप
लाखों ऐसे SETUP हैं
        फिर भी प्यासे रह गए आप
वायदे किये हज़ार
        सांत्वना दिए बार-बार
आंकड़ों में एकत्रित
        रह गई सारी आस
फिर भी प्यासे रह गए आप
        दूषित पानी के कारण
बीमार हो गए आप
         WEVSIDE पर देखकर
धरीज धर लें आप  
          बिन पानी सब सून
फिर भी रह गए आप
         लाल फीता शाही के इस देश में
बूंद-बूंद पानी को तरसें आप
         इसीलिए तो कहता हूँ यारों
दो बूंद ज़िन्दगी की
         हमको भी देदो आज
दो बूंद ज़िन्दगी की
         हमको भी दे दो आज
लाल फीता शाही के इस देश में
          फिर भी प्यासे रह गए आप
फिर भी प्यासे रह गए आप.
          
        

Saturday, July 31, 2010

पावस व्याख्यानमाला का दूसरा दिन

कवि अज्ञेय पर आधारित था.इस सत्र में वक्ताओं ने अपने-अपने ढंग से उन्हें प्रस्तुत किया और जाना .
कभी-कभी आपस में वाक्युध्ह सा भी माहौल बना ,लेकिन सभी ने तर्कसंगत अपनी बात के साक्ष्य प्रस्तुत
किये.किसी ने उन्हें प्रयोगवादी,किसी ने कालजई, तो किसी ने शब्द शिल्पी कहा.श्री शाह साहब ने अज्ञेय
के सन्दर्भ में एक उदाहरण देकर अपनी बात को प्रमादित  किया कि,रेशम के कीड़े को अपना व्यक्तिवाद
छोड़ कर उसे सबके लिए रेशम उपलब्ध कराना पड़ता है.इसी प्रकार कवि अज्ञेय ने व्यक्तिवाद को छोडकर
जन-मानस के समर्थन कि बात अपनी कविता के द्वारा सबके समक्ष रखा .
                                                                                                 इस तरह के आयोजनों कि
हमारे समाज को सख्त ज़रूरत है.हिंदी भवन में इस तरह के आयोजनों का सिलसिला बहुत ही रोचक
और लाभकारी होता है. मैंने भी दर्शक दीर्घा में उपस्थित रहकर इस प्रभावपूर्ण''पावस व्याख्यानमाला''
के सत्रहवे वार्षिक आयोजन का आनंद उठाया,और लाभान्वित हुई.
           ( आज दिनांक ३१-०७-२०१०, दिन शनिवार के अपने अनुभव मैं आपके साथ साझा कर रही हूँ  )
                                                                                                 
                      

मेरे पापा

सुबह सबेरे जल्दी उठते, उठकर योगध्यान करते मेरे पापा
हर काम समय से करते ,हर बात समय से करते
मेरे पापा .............
सबकी छोटी खुशियों में शामिल हो जाते
राग द्वेष से परे अपनी छवि अलग दर्शाते
मेरे पापा ...............
बच्चों के सामान बच्चे बन जाते
कभी रुठते कभी मान जाते
मेरे पापा .................
बाहर जाने पर उपहार लाते
पसंद न आने पर पुनः दिलाते
मेरे पापा .................
रंगमंच पर भूल कर भी छा जाते
हर चरित्र ,हर पात्र को सच कर जाते
मेरे पापा ................
माँ के पीठ पीछे  भी तारीफ करते
देर से आने पर झिडकी देते
मेरे पापा ................
सदाचार, सद्भाव का सन्देश देते
मंत्रोच्चार से घर को महकाते
मेरे पापा .................
धन्य इश्वेर  आपको मेरा वंदन है
ऐसे पापा के लिए सैदव नमन
ईश तुल्य,स्नेह्तुल्य,सदाचरण वाले
अहोभाग्य हमारे हम आपके अंश हैं
शत-शत नमन है तुम्हें
मेरे पापा..................

Friday, July 30, 2010

पावस व्याखान माला

पावस व्याख्यानमाला में देशभर के नामचीन साहित्यकारों का आगमन हुआ .
इसका आयोजन मध्यप्रदेश राष्ट्र भाषा प्रचार समिति द्वारा पंडित रविशंकर शुक्ल
हिंदी भवन न्यास के सहयोग से हुआ. सत्रहवी पावस व्याख्यानमाला का आयोजन
हिंदी भवन में ३० जुलाई से १ अगस्त तक रहेगा .इसमें डॉ. विश्वनाथ प्रसाद
तिवारी ,प्रयाग शुक्ल, डॉ.रंजना अरगड़े .प्रो.रमेश चन्द्र शाह ,डॉ. विजय बहादुर
सिंह,डॉ.यतीन्द्र तिवारी,डॉ.करुना शंकर उपाध्याय,डॉ.अरुणेश नीरन,सहित
४० नामचीन हस्तियाँ आयेंगे.
                                      आज सत्र के पहले दिन''बादल राग'' पर प्रदर्शनी का शुभारम्भ हुआ.
यह फोटो चित्र प्रदर्शनी बादल राग पर आधारित थी. इस प्रदर्शनी का मुख्या आकर्षण गणपति की
छवि को चरितार्थ कर रहा था .  सभी चित्रों को सजीवता के साथ प्रस्तुत किया गया था.अति मोहक
और दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति काबिले तारीफ थी.
                                       इस व्याख्यानमाला में शताब्दी के चार महान शब्द पुरुषों .........

कवी अज्ञेय ,नागार्जुन, शमशेर और केदारनाथ अग्रवाल के व्यक्तित्व तथा  क्रतित्व्य पर
केन्द्रित होगी .

Thursday, July 29, 2010

पेड़

आम , नीम ,इमली का पेड़
पेड़ पेड़ है इसे ना काटो
इससे अपने दुःख को बाटो
ये जब सब कट जायेंगे
हम शुद्ध  हवा कहाँ से पाएंगे
शुद्ध हवा ना पाएंगे
तो हम कैसे जी पाएंगे
बोलो - बोलो
हम कैसे जी पाएंगे

छुट्टी

छुट्टी - छुट्टी - छुट्टी आई
ढेरों  खुशियाँ  लाई
रात को जागो देर तक सोओ
उठकर फिर खुश हो लो
पतंग उडाओ पेंच लड़ाओ
आसमान में उड़ते जाओ
टॉम एंड जेर्री बोब दा बिल्डर
बनकर फिर खुश होलो
आम रसीले चूसो खाओ
मम्मी- पापा से मंगवाओ
दादा-नाना वाले किस्से
सुनकर स्वप्न में खो जाओ
छुट्टी-छुट्टी-छुट्टी आई
ढेरो खुशियाँ लाई.