मनुष्य जीवन में पुस्तकों का स्थान अति विशिष्ठ है.
पुस्तक मनुष्य जीवन की आत्मा है यह सर्व विदित है.
जीवन में पुस्तक प्रकाश पुंज की तरह है.इनमे तीनों शक्तियां निहित है.
ये शक्तियां हैं-सर्जनात्मक,रक्षात्मक,और विध्वंस्नात्मक हैं.जो समय-समय पर
उदघोषित होती रहती हैं.ये हमें जीवन में तादात्मय स्थापित करने के लिए संबल
प्रदान करती हैं.
हमें जीवन से जो अनुभव प्राप्त नहीं होता,वह ज्ञान से प्राप्त होता है
जो कि वास्तव में एक पुस्तक के माध्यम से ही हासिल होता है.मेरा मानन है कि जीवन
में ज्ञान तीन तरह से प्राप्त होता है - पठन-पाठन से,अनुसरण से,और अनुभव से.
अनुभव ज्ञान की वह पुस्तक है जो सबसे कड़वी और सच्ची है.
पुस्तक मनुष्य जीवन की वह सीढ़ी है जिस पर चढ़कर कोई भी नीचे
उतरना नहीं चाहता है.नीचे झाँकने पर उसे दुनियां के रंग-ढंग साफ दिखाई देने लगते हैं.
मेरी सोच है कि एक अच्छी किताब बचपन में जीवन कि आशा होती है,यौवन में कर्मों
कि अभिलाषा होती है,और बुढ़ापे में वही किताब ज्ञान कि भाषा बन जाती है.
गांधीजी ने कहा था 'किसी कि मेहेरबानी मांगना अपनी आज़ादी बेचने के समान है'.
मैं तो कहूँगी कि,जो पुस्तक का दास है उसे किसी कि मेहेरबानी मांगने कि आवश्यकता नहीं
पड़ती है.जिस तरह आँखों को देखने के लिए रौशनी कि ज़रूरत होती है,उसी तरह मस्तिष्क
को सोचने के लिए विचारों कि,और विचार पुस्तकों के अध्ययन से प्राप्त होता है.
एक कहावत है'पढो पर सोचो ज्यादा,बोलो पर सुनो ज्यादा'यही बुद्धीमान होने कि
निशानी है.
हमारे देश में अभी हिंदी बाल साहित्य और साहित्यकारों की कमी है.क्यूंकि यहाँ
इन पुस्तकों के प्रकाशन के लिए PUBLISHAR को खोजना पड़ता है,जबकि अमेरिका आदि
देशों में हर १३ मिनिट में एक किताब छपती है,और उनमें बाल साहित्य कि संख्या अधिक है.
एक अच्छी पुस्तक देवतुल्य होती है.उसमे देवी-देवताओं का वास होता है.पुस्त-
- कालय ज्ञान का मंदिर है.वहां सरस्वती माँ स्वयं विराजती है.महापुरूषों कि आत्माएं उन
पुस्तकों के रूप में स्थापित रहती हैं.सत्संग के लिए पुस्तकालय से बढकर विद्वान और निर्मल
व्यक्तित्य कोई दूसरा नहीं मिल सकता है.मैंने सोचा है कि अमूल्य खजाने केरूप में मैं अपने बच्चों
को एक प्रेरणादायक पुस्तकालय कि स्थापना करके धरोहर छोड़ जाउंगी.
ताकि वे कभी अपने-आप को अकेला न समझें.और कहा भी तो गया है कि किताबें मनुष्य कि सबसे अच्छी साथी होती है.,''कभी लम्हों ने खता कि थी,सदियों ने सजा पाई''ये सोचकर हम निराश न होवें.और रही बात किताबों के महत्त्व कि तो वो सर्वविदित है.अपने बच्चों में पढने कि आदत हमें अभी और आज से ही विकसित
करनी होगी,तभी हम अपने संस्कारों को, जड़ों को,समाज को,देश को उन्नत कर पाएंगे.
( इस सन्देश के बारे में आप मित्रों के सुझाव का मुझे इंतजार रहेगा )