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Saturday, July 31, 2010

पावस व्याख्यानमाला का दूसरा दिन

कवि अज्ञेय पर आधारित था.इस सत्र में वक्ताओं ने अपने-अपने ढंग से उन्हें प्रस्तुत किया और जाना .
कभी-कभी आपस में वाक्युध्ह सा भी माहौल बना ,लेकिन सभी ने तर्कसंगत अपनी बात के साक्ष्य प्रस्तुत
किये.किसी ने उन्हें प्रयोगवादी,किसी ने कालजई, तो किसी ने शब्द शिल्पी कहा.श्री शाह साहब ने अज्ञेय
के सन्दर्भ में एक उदाहरण देकर अपनी बात को प्रमादित  किया कि,रेशम के कीड़े को अपना व्यक्तिवाद
छोड़ कर उसे सबके लिए रेशम उपलब्ध कराना पड़ता है.इसी प्रकार कवि अज्ञेय ने व्यक्तिवाद को छोडकर
जन-मानस के समर्थन कि बात अपनी कविता के द्वारा सबके समक्ष रखा .
                                                                                                 इस तरह के आयोजनों कि
हमारे समाज को सख्त ज़रूरत है.हिंदी भवन में इस तरह के आयोजनों का सिलसिला बहुत ही रोचक
और लाभकारी होता है. मैंने भी दर्शक दीर्घा में उपस्थित रहकर इस प्रभावपूर्ण''पावस व्याख्यानमाला''
के सत्रहवे वार्षिक आयोजन का आनंद उठाया,और लाभान्वित हुई.
           ( आज दिनांक ३१-०७-२०१०, दिन शनिवार के अपने अनुभव मैं आपके साथ साझा कर रही हूँ  )
                                                                                                 
                      

मेरे पापा

सुबह सबेरे जल्दी उठते, उठकर योगध्यान करते मेरे पापा
हर काम समय से करते ,हर बात समय से करते
मेरे पापा .............
सबकी छोटी खुशियों में शामिल हो जाते
राग द्वेष से परे अपनी छवि अलग दर्शाते
मेरे पापा ...............
बच्चों के सामान बच्चे बन जाते
कभी रुठते कभी मान जाते
मेरे पापा .................
बाहर जाने पर उपहार लाते
पसंद न आने पर पुनः दिलाते
मेरे पापा .................
रंगमंच पर भूल कर भी छा जाते
हर चरित्र ,हर पात्र को सच कर जाते
मेरे पापा ................
माँ के पीठ पीछे  भी तारीफ करते
देर से आने पर झिडकी देते
मेरे पापा ................
सदाचार, सद्भाव का सन्देश देते
मंत्रोच्चार से घर को महकाते
मेरे पापा .................
धन्य इश्वेर  आपको मेरा वंदन है
ऐसे पापा के लिए सैदव नमन
ईश तुल्य,स्नेह्तुल्य,सदाचरण वाले
अहोभाग्य हमारे हम आपके अंश हैं
शत-शत नमन है तुम्हें
मेरे पापा..................

Friday, July 30, 2010

पावस व्याखान माला

पावस व्याख्यानमाला में देशभर के नामचीन साहित्यकारों का आगमन हुआ .
इसका आयोजन मध्यप्रदेश राष्ट्र भाषा प्रचार समिति द्वारा पंडित रविशंकर शुक्ल
हिंदी भवन न्यास के सहयोग से हुआ. सत्रहवी पावस व्याख्यानमाला का आयोजन
हिंदी भवन में ३० जुलाई से १ अगस्त तक रहेगा .इसमें डॉ. विश्वनाथ प्रसाद
तिवारी ,प्रयाग शुक्ल, डॉ.रंजना अरगड़े .प्रो.रमेश चन्द्र शाह ,डॉ. विजय बहादुर
सिंह,डॉ.यतीन्द्र तिवारी,डॉ.करुना शंकर उपाध्याय,डॉ.अरुणेश नीरन,सहित
४० नामचीन हस्तियाँ आयेंगे.
                                      आज सत्र के पहले दिन''बादल राग'' पर प्रदर्शनी का शुभारम्भ हुआ.
यह फोटो चित्र प्रदर्शनी बादल राग पर आधारित थी. इस प्रदर्शनी का मुख्या आकर्षण गणपति की
छवि को चरितार्थ कर रहा था .  सभी चित्रों को सजीवता के साथ प्रस्तुत किया गया था.अति मोहक
और दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति काबिले तारीफ थी.
                                       इस व्याख्यानमाला में शताब्दी के चार महान शब्द पुरुषों .........

कवी अज्ञेय ,नागार्जुन, शमशेर और केदारनाथ अग्रवाल के व्यक्तित्व तथा  क्रतित्व्य पर
केन्द्रित होगी .

Thursday, July 29, 2010

पेड़

आम , नीम ,इमली का पेड़
पेड़ पेड़ है इसे ना काटो
इससे अपने दुःख को बाटो
ये जब सब कट जायेंगे
हम शुद्ध  हवा कहाँ से पाएंगे
शुद्ध हवा ना पाएंगे
तो हम कैसे जी पाएंगे
बोलो - बोलो
हम कैसे जी पाएंगे

छुट्टी

छुट्टी - छुट्टी - छुट्टी आई
ढेरों  खुशियाँ  लाई
रात को जागो देर तक सोओ
उठकर फिर खुश हो लो
पतंग उडाओ पेंच लड़ाओ
आसमान में उड़ते जाओ
टॉम एंड जेर्री बोब दा बिल्डर
बनकर फिर खुश होलो
आम रसीले चूसो खाओ
मम्मी- पापा से मंगवाओ
दादा-नाना वाले किस्से
सुनकर स्वप्न में खो जाओ
छुट्टी-छुट्टी-छुट्टी आई
ढेरो खुशियाँ लाई.