बात उस समय कि है जब लाली बहुत छोटी थी और उस समय वह अन्य बच्चों से अलग सोच रखती थी .सारे बच्चे जब पोशम्पा, नदी -पहाड़ ,और लुका-छिपी के खेल खेला करते थे,तब लाली को वो खेल उबावूलगते थे .वो हमेशा वीरता के खेल खेलना पसंद करती थी.इसके अलावा रेत में खेलना उसे बहुत भाता था.खासकर रेत में वो महल बनाया करती थी.वह सपना भी देखती तो वो महल -दुमहले का होता था.महल कोई मामूली महल न था,उसमे ऊँची-ऊँची मीनारें और गोल-गोल गुम्बज हुआ करते थे.लाली जब अपने सपने के बारेमें अपने साथियों  को बताती तो वे लोग लाली की खूब खिल्ली  उड़ाया करते थे.इसके अलावा लाली का दूसरा शौक था हथियार चलाना.
                           
हथियार चलाना वो बड़ी लगन और मेहनत के साथ अपने पिता से सीख रही थी.तलवार,
बरछी,भाला,और न जाने कई शस्त्र चलाने में वह निपुण हो गई थी.एक दिन जब लाली बच्चों के साथ खेल रही थी.तो किसीके शोर का स्वर उसके कानों में पड़ा''बचाओ -बचाओ शेर आया,शेर आया'' जैसे ही लाली ने सुना बिना कुछ सोचे-समझे शेर के सामने पहुँच गई.और उसने देखा की शेर दीनू के सामने दौड़ा चला जा रहा था.दीनू को धक्का देकर लाली ने बिना कुछ सोचे-समझे शेर के सामने छलांग लगा दी.उसके साथ के बच्चे और दीनू लाली को इस अवस्था  में देखकर डर से
कांप उठे और उन्होंने लाली को शेर के पास जाने से मना भी किया.लेकिन लाली कहाँ मानने वाली थी? उसने बड़ी ही चालाकी,सूझ-बुझ और निडरता के साथ शेर का मुकाबला किया और उसे घायल कर मार गिराया.उसके बाल सखागन लाली की बहादुरी देख दंग रह गए. उन्होंने चिल्ला-चिल्ला कर सभी गाव वालों को इकट्ठा कर लाली की बहादुरी के किस्से सुनाये.इस तरह गावं  की भोली-भाली लेकिन निडर लाली के चर्चे गाव के बहार दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गए.और हों भी क्यूँ ना,लाली ने काम भी तो बड़ी बहादुरी का किया था.शेर को इतनी कम उम्र में मार गिरना कोई मजाक नहीं था.
                              इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की विपत्ति के समय निर्भीक होकर समझदारी से काम लेना चाहिए.परिस्थिति के अनुसार दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए.एक लड़की चाहे तो आत्मसुरक्षा के लिए शस्त्र चलाना सीख सकती हैऔर उसका इस्तेमाल भी कर सकती है.
                 ज़रूरत पड़ने पर दूसरों का और स्वयं का बचाव कर सकती है.बस आवशकता है सच्चे संकल्प की .
                          
 
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