अगर मैं घुंघरू होती माँ,छन-छन ,छन-छन करती माँ
पल-पल,पल-पल आनंद मैं भरती माँ
नाच के पेट भरती माँ,दुःख में भी मैं हंसती माँ
जब जी चाहे नचती माँ,दिल में सबके बसती माँ
तन का श्रृंगार मैं करती माँ,दरउसके जा मैं रहती माँ
घर सबके मन में करती माँ,सब लोगों को मैं हरती माँ
नट सम्राट के पग में सजती माँ,तुम देख मुझे खुद हंसती माँ
अगर मैं घुंघरू होती माँ,छन-छन,छन-छन करती माँ
पल-पल,पल-पल आनंद भरती माँ
अगर मैं घुंघरू होती माँ, अगर मैं घुंघरू होती माँ
Sunday, September 26, 2010
Thursday, September 23, 2010
जानवर का फ़र्ज़
दीनू ने बैलों की जोड़ी से कहा
आज जोतना है ,मालिक का खेत
कमर कसकर तैयार रहो
चारा खाकर भरपेट चलो
वहां न चलेगी अपनी माया
क्यूंकि उसपर मोटी काया
बैलों ने आपस में देखा
और देखकर किया विचार
आज करेंगे पूरा काम
नहीं करेंगे हम आराम
दीनू को देंगे उपहार
अपनी जोड़ी का स्नेह-प्यार
कभी ना छोड़ेंगे हम साथ
जानवर हुए तो क्या हुआ ?
शैतान को सबक सिखायेंगे
दीनू के खेत को बचायेंगे
शैतान से मुक्त कराएँगे
फिर मोती फसल उगायेंगे
खेत को चमन बनायेंगे
क़र्ज़ से मुक्त कराएँगे
जानवर का फ़र्ज़ निभाएंगे
इंसान को फिर बचायेंगे
आज जोतना है ,मालिक का खेत
कमर कसकर तैयार रहो
चारा खाकर भरपेट चलो
वहां न चलेगी अपनी माया
क्यूंकि उसपर मोटी काया
बैलों ने आपस में देखा
और देखकर किया विचार
आज करेंगे पूरा काम
नहीं करेंगे हम आराम
दीनू को देंगे उपहार
अपनी जोड़ी का स्नेह-प्यार
कभी ना छोड़ेंगे हम साथ
जानवर हुए तो क्या हुआ ?
शैतान को सबक सिखायेंगे
दीनू के खेत को बचायेंगे
शैतान से मुक्त कराएँगे
फिर मोती फसल उगायेंगे
खेत को चमन बनायेंगे
क़र्ज़ से मुक्त कराएँगे
जानवर का फ़र्ज़ निभाएंगे
इंसान को फिर बचायेंगे
Tuesday, September 21, 2010
लोरी -निंदिया
कभी-कभी निंदिया पंछी लगे ,दूर-दूर गगन में उड़ती चले
कल-कल कलरव करती रहे ,पल-पल आनंद भरती चले
धीरे-धीरे निंदिया बादलों में छुपे ,छुप-छुप कर चंदा से बात करे
मंद-मंद गीत गुनगुनाती रहे ,हौले-हौले आगे बढ़ती चले
बार-बार निंदिया सपने बुने ,हंस-हंस कर रोंने लगे
नन्हे-नन्हे परों को फैलाया करे ,छोटे-छोटे बच्चों संग दाना चुगे
ऊँची-ऊँची निंदिया उड़ान भरे ,बड़े-बड़े बिछौने में खेला करे
कभी-कभी निंदिया पंछी लगे ,दूर-दूर गगन में उड़ती चले
कभी-कभी निंदिया पंछी लगे ,कभी-कभी निंदिया पंछी लगे
कल-कल कलरव करती रहे ,पल-पल आनंद भरती चले
धीरे-धीरे निंदिया बादलों में छुपे ,छुप-छुप कर चंदा से बात करे
मंद-मंद गीत गुनगुनाती रहे ,हौले-हौले आगे बढ़ती चले
बार-बार निंदिया सपने बुने ,हंस-हंस कर रोंने लगे
नन्हे-नन्हे परों को फैलाया करे ,छोटे-छोटे बच्चों संग दाना चुगे
ऊँची-ऊँची निंदिया उड़ान भरे ,बड़े-बड़े बिछौने में खेला करे
कभी-कभी निंदिया पंछी लगे ,दूर-दूर गगन में उड़ती चले
कभी-कभी निंदिया पंछी लगे ,कभी-कभी निंदिया पंछी लगे
Sunday, September 19, 2010
गरबा ( भजन )
जय मा अम्बे, जय जगदम्बे ,जय मा अम्बे ,जय जगदम्बे .......२
म्हारा आँगन मा आवोजी मा ,आके दरस दिखाओ मा .............२
म्हारी विनती सुन लो शक्ति माता ,रानी मा .........२
भर दो म्हारी झोली ,शक्ति माता रानी मा
खाली झोली मैं जाऊ ना ........२
मैं गरबी नौ दिन रखूंगी ,डांडिया नौ दिन खेलूंगी
म्हारा आँगन मा आओजी मा ,आके दरस दिखाओ मा .............२
म्हारी विनती सुन लो काली माता ,रानी मा ............२
भर दो म्हारा भंडार ,काली माता ,रानी मा
निर्धन ना रह जाऊ मा ..........२
मैं दर तेरे जोत जलौंगी ,जवारे बोती जाउंगी
म्हारा आँगन मा आओ जी मा ,आके दरस दिखाओ मा .............२
म्हारी विनती सुन लो शारदा माता ,रानी मा ...........२
भर दो सूनी मांग, शारदा माता, रानी मा
आज सुहागन बन जाऊ मैं ........२
मैं कन्या भोज करौंगी ,आरती करती जाउंगी
म्हारा आँगन मा आओ जी मा ,आके दरस दिखाओ मा ..............२
सुमीर जस गाती जाउंगी ,दरस तेरे पाके तर जाउंगी
म्हारा आँगन मा आओ जी मा ........2
म्हारा आँगन मा आवोजी मा ,आके दरस दिखाओ मा .............२
म्हारी विनती सुन लो शक्ति माता ,रानी मा .........२
भर दो म्हारी झोली ,शक्ति माता रानी मा
खाली झोली मैं जाऊ ना ........२
मैं गरबी नौ दिन रखूंगी ,डांडिया नौ दिन खेलूंगी
म्हारा आँगन मा आओजी मा ,आके दरस दिखाओ मा .............२
म्हारी विनती सुन लो काली माता ,रानी मा ............२
भर दो म्हारा भंडार ,काली माता ,रानी मा
निर्धन ना रह जाऊ मा ..........२
मैं दर तेरे जोत जलौंगी ,जवारे बोती जाउंगी
म्हारा आँगन मा आओ जी मा ,आके दरस दिखाओ मा .............२
म्हारी विनती सुन लो शारदा माता ,रानी मा ...........२
भर दो सूनी मांग, शारदा माता, रानी मा
आज सुहागन बन जाऊ मैं ........२
मैं कन्या भोज करौंगी ,आरती करती जाउंगी
म्हारा आँगन मा आओ जी मा ,आके दरस दिखाओ मा ..............२
सुमीर जस गाती जाउंगी ,दरस तेरे पाके तर जाउंगी
म्हारा आँगन मा आओ जी मा ........2
Wednesday, September 15, 2010
खेल-खेल में ( बाल कविता )
खेल-खेल में हम पढेंगे ,अ ,आ, इ ,ई-ऐ, बी ,सी ,डी
खेल-खेल में हम गायेंगे ,सा,रे गा,मा,गीत,भजन
खेल-खेल में हम नाचेंगे ,कत्थक,मणिपुरी,भरतनाट्यम,मोहिनी अट्टम
खेल-खेल में हम लिखेंगे,कविता,निबंध ,कहानी,सुलेख
खेल-खेल में हम खायेंगे हलवा,पूरी,फल,मिठाई
खेल-खेल में हम सुनेगे ,गीता,कुरान,bybal ,गुरुग्रंथ
खेल-खेल में हम पूजेंगे ,मात-पिता ,ईश,गुरु
खेल -खेल में हम लड़ेंगे ,पोलिओ,कैंसर ,एड्स,पीलिया
खेल-खेल में हम मिटायेंगे,गरीबी,अशिक्षा, हिंसा,आतंक
खेल-खेल में हम पढ़ाएंगे,प्रेम,अहिंसा,एकता,भाईचारा
खेल-खेल में हम बचायेंगे,बिजली ,पेड़, पानी,धरोहर
खेल-खेल में रे बाबा खेल-खेल में
खेल-खेल में हम गायेंगे ,सा,रे गा,मा,गीत,भजन
खेल-खेल में हम नाचेंगे ,कत्थक,मणिपुरी,भरतनाट्यम,मोहिनी अट्टम
खेल-खेल में हम लिखेंगे,कविता,निबंध ,कहानी,सुलेख
खेल-खेल में हम खायेंगे हलवा,पूरी,फल,मिठाई
खेल-खेल में हम सुनेगे ,गीता,कुरान,bybal ,गुरुग्रंथ
खेल-खेल में हम पूजेंगे ,मात-पिता ,ईश,गुरु
खेल -खेल में हम लड़ेंगे ,पोलिओ,कैंसर ,एड्स,पीलिया
खेल-खेल में हम मिटायेंगे,गरीबी,अशिक्षा, हिंसा,आतंक
खेल-खेल में हम पढ़ाएंगे,प्रेम,अहिंसा,एकता,भाईचारा
खेल-खेल में हम बचायेंगे,बिजली ,पेड़, पानी,धरोहर
खेल-खेल में रे बाबा खेल-खेल में
Sunday, September 12, 2010
बारिश
गर्मी से बेहाल धरा ने नतमस्तक गुहार किया
तब प्रसन्ना हो इन्द्रदेव ने बरखा का आगाज़ किया
छोटी बड़ी सभी बूंदों ने बिखरा दी छटा निराली
सोंधी-सोंधी खुश्बू प्यारी फिर महकी इस धरती पे
फूल पेड़ पंछी फिर चहके ऋतुराज का दिल भी बहके
मस्त पवन फिर धीरे-धीरे बरखा का आलिंगन करके
अरसे से प्यासी धरा के आँचल में बूंदों को भरके
इठलाके-बलखाके झूमकर भीगे
बच्चे ,बूढ़े सभी जन भीगे
रंग-बिरंगी छतरियों संग भीगे
कागज़ कि किश्तियों संग भीगे
तन भी भीगे- मन भी भीगे
इन्द्रधनुषी रंग में सब भीगे
बरखा के आनंद में भीगे
भीगे जन फिर जी लें
भीगे जन फिर जी लें .
तब प्रसन्ना हो इन्द्रदेव ने बरखा का आगाज़ किया
छोटी बड़ी सभी बूंदों ने बिखरा दी छटा निराली
सोंधी-सोंधी खुश्बू प्यारी फिर महकी इस धरती पे
फूल पेड़ पंछी फिर चहके ऋतुराज का दिल भी बहके
मस्त पवन फिर धीरे-धीरे बरखा का आलिंगन करके
अरसे से प्यासी धरा के आँचल में बूंदों को भरके
इठलाके-बलखाके झूमकर भीगे
बच्चे ,बूढ़े सभी जन भीगे
रंग-बिरंगी छतरियों संग भीगे
कागज़ कि किश्तियों संग भीगे
तन भी भीगे- मन भी भीगे
इन्द्रधनुषी रंग में सब भीगे
बरखा के आनंद में भीगे
भीगे जन फिर जी लें
भीगे जन फिर जी लें .
Wednesday, September 8, 2010
''स्लेट और बत्ती ''
स्लेट और बत्ती कि हुई लड़ाई
दोनों ने मिलकर कि खूब हाथापाई
स्लेट बोला क्यूँ इतराती हो
तुम्हें सब भूल चुके फिर भी बहलाती हो
बत्ती बोली क्यूँ भाव खाते हो
तुम्हें सब छोड़ चुके फिर भी नख्राते हो
स्लेट बोला ग्रामीण परिवेश में कभी-कभी जी लेता हूँ
वरना तो मैं दिन भर रोता हूँ
बत्ती बोली मैं भी कहाँ सुख पाती हूँ
लिखने के लिए नहीं अब तो शो के काम आती हूँ
दोनों कि आपबीती सुन
रामू भोला यूँ बोला
क्या बोला ???????
क्यूँ झगडा - लड़ाई बढ़ाते हो
multimedia के युग में देसी ढर्रा चलते हो
हवाई जहाज छोडकर साईकिल पर घुमाते हो
दोनों ने मिलकर कि खूब हाथापाई
स्लेट बोला क्यूँ इतराती हो
तुम्हें सब भूल चुके फिर भी बहलाती हो
बत्ती बोली क्यूँ भाव खाते हो
तुम्हें सब छोड़ चुके फिर भी नख्राते हो
स्लेट बोला ग्रामीण परिवेश में कभी-कभी जी लेता हूँ
वरना तो मैं दिन भर रोता हूँ
बत्ती बोली मैं भी कहाँ सुख पाती हूँ
लिखने के लिए नहीं अब तो शो के काम आती हूँ
दोनों कि आपबीती सुन
रामू भोला यूँ बोला
क्या बोला ???????
क्यूँ झगडा - लड़ाई बढ़ाते हो
multimedia के युग में देसी ढर्रा चलते हो
हवाई जहाज छोडकर साईकिल पर घुमाते हो
आशीष
ऐ मित्र !उठो सम्हलो जागो
चेहरे पर नवजीवन लाओ
जो छूट गया उसको छोडो
जो भूल गया उसको भूलो
होठों पर तान नई छेड़ो
मन में विश्वास नया बुनो
पथ की बाधाएं पर करो
जग में सदैव उन्नति करो
अपने हुनर का मान करो
वाणी सैयम से कार्य करो
पथ पर समहल कर धन्य रहो
निराशाओं से खुद उबरो
आशाओं को साकार करो
अपने कम का अभिमान करो
इस पल को बेकार ना नष्ट करो
ऐ मित्र !आशीषों को स्वीकार करो
फिर नए नीड़ का निर्माण करो 1
चेहरे पर नवजीवन लाओ
जो छूट गया उसको छोडो
जो भूल गया उसको भूलो
होठों पर तान नई छेड़ो
मन में विश्वास नया बुनो
पथ की बाधाएं पर करो
जग में सदैव उन्नति करो
अपने हुनर का मान करो
वाणी सैयम से कार्य करो
पथ पर समहल कर धन्य रहो
निराशाओं से खुद उबरो
आशाओं को साकार करो
अपने कम का अभिमान करो
इस पल को बेकार ना नष्ट करो
ऐ मित्र !आशीषों को स्वीकार करो
फिर नए नीड़ का निर्माण करो 1
Tuesday, September 7, 2010
ॐ साईं ताज
तेरे दर कि आबो हवा में एक जूनून सा है
बाबा कि इनायत में एक सुरूर सा है
दर तेरे जाके मैं मौला पुकारूँ शामो शेहेर
बाबा कि इजाज़त हो तो रहबर का दीदार करूँ
इजाज़त मांग के मौला से मुरादें पालूं
मुरादें पूरी कर देंगे शाहवली
बाबा कि इजाज़त हो तो कलमा पढ़ लूँ
कलमा पढ़ के खुदा का शुक्रिया कर लूँ
करम करने को तैयार हैं ताज्वली
तेरे दर कि आबो हवा में एक जूनून सा है
तेरे दर कि आबो हवा में एक शुरुर सा है
बाबा कि इजाज़त हो तो सजदा कर लूँ
सजदे पे पीर कि नेकियत पा लूँ
जीवन के हर एक मोड़ पे साथ हैं पीरवली
तुम हमें छोड़ के जाओगे तो मर जायेंगे
करम इतना कर दो कि दिल बसा लो
दिल में बसने का हक देने को तैयार हैं ख्वाजवाली
तेरे दर कि आबो हवा में एक जूनून सा है
तेरेदर कि आबो हवा में एक शुरुर सा है .
बाबा कि इनायत में एक सुरूर सा है
दर तेरे जाके मैं मौला पुकारूँ शामो शेहेर
बाबा कि इजाज़त हो तो रहबर का दीदार करूँ
इजाज़त मांग के मौला से मुरादें पालूं
मुरादें पूरी कर देंगे शाहवली
बाबा कि इजाज़त हो तो कलमा पढ़ लूँ
कलमा पढ़ के खुदा का शुक्रिया कर लूँ
करम करने को तैयार हैं ताज्वली
तेरे दर कि आबो हवा में एक जूनून सा है
तेरे दर कि आबो हवा में एक शुरुर सा है
बाबा कि इजाज़त हो तो सजदा कर लूँ
सजदे पे पीर कि नेकियत पा लूँ
जीवन के हर एक मोड़ पे साथ हैं पीरवली
तुम हमें छोड़ के जाओगे तो मर जायेंगे
करम इतना कर दो कि दिल बसा लो
दिल में बसने का हक देने को तैयार हैं ख्वाजवाली
तेरे दर कि आबो हवा में एक जूनून सा है
तेरेदर कि आबो हवा में एक शुरुर सा है .
Monday, September 6, 2010
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
भीतर तक भीगे आज
बहुत दिनों के बाद
जीकर पीलें आज
बहुत दिनों के बाद
चीखकर रोकें आज
बहुत दिनों के बाद
सीखकर साधें ज्ञान
बहुत दिनों के बाद
चोंककर जगे आज
बहुत दिनों के बाद
उठकर भागे आज
बहुत दिनों के बाद
मिलकर होलें साथ
बहुत दिनों के बाद
दिलों के आगे आज
नम्र होलें साथ
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद .
भीतर तक भीगे आज
बहुत दिनों के बाद
जीकर पीलें आज
बहुत दिनों के बाद
चीखकर रोकें आज
बहुत दिनों के बाद
सीखकर साधें ज्ञान
बहुत दिनों के बाद
चोंककर जगे आज
बहुत दिनों के बाद
उठकर भागे आज
बहुत दिनों के बाद
मिलकर होलें साथ
बहुत दिनों के बाद
दिलों के आगे आज
नम्र होलें साथ
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद .
Sunday, September 5, 2010
मौन
पुष्प के मौन को ग्रहण करो
लाश के मौन से डरा करो
मौन परों पर तैरते पंछियों से सीखो
शमशान के मौन को साधो
क्यूंकि.......................
फूल का मौन फूल बनाएगा
लाश का मौन लाश बनाएगा
पंछियों का मौन पंछी बनाएगा
लेकिन ........................
शमशान का मौन साधक बनाएगा .
लाश के मौन से डरा करो
मौन परों पर तैरते पंछियों से सीखो
शमशान के मौन को साधो
क्यूंकि.......................
फूल का मौन फूल बनाएगा
लाश का मौन लाश बनाएगा
पंछियों का मौन पंछी बनाएगा
लेकिन ........................
शमशान का मौन साधक बनाएगा .
why we celebrate teachers day?
All across the world, teachers day celebrations are undertaken to commemorate the teachers for their efforts. By having celebrations on teachers day we convey the message that we care for our teachers. Celebrating teachers day is recognition of the devotion with which teachers undertake the responsbility of educating a child.
September 5 is teachers day in INDIA. It is the birthday of second president of India an teacher Dr. Sarvapalli Radhakrishnan. When Dr. Radhakrishnan became the president of India in 1962, some of his students and friends approached him and requested him to allow them to celebrate 5th September, his birthday. In reply Dr. Radhakrishnan said, "Instead of celebrating my birthday separately, it would be my proud priviledge if September 5 is observed as" teachers day.
Teachers mold the lives
Teachers breakdown barriers.
Teachers guide the path
Teachers make the lession.
Teachers light the lights.
Teachers resque hurting.
Teachers save us.
Whenever we need them they are always their.
Thursday, September 2, 2010
डांट
आज मम्मी की डांट बहुत याद आ रही है
आज मम्मी की गांठ बहुत याद आ रही है
डांट में छुपा होता था प्यार और दुलार
गांठ में छुपा होता था त्याग और बलिदान
डांट में बसा होता था सबक और टसक
गांठ में बसा होता था मन और धन
डांट में छुपा होता था इकरार और इंकार
गांठ में छुपा होता था वर्तमान और भविष्य
आज मम्मी डांट बहुत याद आती है
आज मम्मी की गांठ बहुत याद आती है
डांट में बसा होता था तर्क और वितर्क
गांठ में बसा होता था मान और उपमान
आज मम्मी की डांट बहुत याद आती है
आज मम्मी की गांठ बहुत याद आती है //
आज मम्मी की गांठ बहुत याद आ रही है
डांट में छुपा होता था प्यार और दुलार
गांठ में छुपा होता था त्याग और बलिदान
डांट में बसा होता था सबक और टसक
गांठ में बसा होता था मन और धन
डांट में छुपा होता था इकरार और इंकार
गांठ में छुपा होता था वर्तमान और भविष्य
आज मम्मी डांट बहुत याद आती है
आज मम्मी की गांठ बहुत याद आती है
डांट में बसा होता था तर्क और वितर्क
गांठ में बसा होता था मान और उपमान
आज मम्मी की डांट बहुत याद आती है
आज मम्मी की गांठ बहुत याद आती है //
सूरज
सबसे पहले आता सूरज
कभी न जी चुराता सूरज
जग को फिर महकता सूरज
खग को नित जगाता सूरज
नभ को रोज़ जगमगाता सूरज
सबसे पहले आता सूरज सूरज
कभी न जी चुराता सूरज
तन को खूब चमकता सूरज
मन को गति में लता सूरज
घन को दूर भगाता सूरज
सबसे पहले आता सूरज
कभी न जी चुराता सूरज
दुःख को चक्र बताता सूरज
सुख को फल बुलाता सूरज
मोक्षय का ध्यान कराता सूरज
सबसे पहले आता सूरज
कभी ना जी चुराता सूरज II
कभी न जी चुराता सूरज
जग को फिर महकता सूरज
खग को नित जगाता सूरज
नभ को रोज़ जगमगाता सूरज
सबसे पहले आता सूरज सूरज
कभी न जी चुराता सूरज
तन को खूब चमकता सूरज
मन को गति में लता सूरज
घन को दूर भगाता सूरज
सबसे पहले आता सूरज
कभी न जी चुराता सूरज
दुःख को चक्र बताता सूरज
सुख को फल बुलाता सूरज
मोक्षय का ध्यान कराता सूरज
सबसे पहले आता सूरज
कभी ना जी चुराता सूरज II
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