कभी-कभी निंदिया पंछी लगे ,दूर-दूर गगन में उड़ती चले
कल-कल कलरव करती रहे ,पल-पल आनंद भरती चले
धीरे-धीरे निंदिया बादलों में छुपे ,छुप-छुप कर चंदा से बात करे
मंद-मंद गीत गुनगुनाती रहे ,हौले-हौले आगे बढ़ती चले
बार-बार निंदिया सपने बुने ,हंस-हंस कर रोंने लगे
नन्हे-नन्हे परों को फैलाया करे ,छोटे-छोटे बच्चों संग दाना चुगे
ऊँची-ऊँची निंदिया उड़ान भरे ,बड़े-बड़े बिछौने में खेला करे
कभी-कभी निंदिया पंछी लगे ,दूर-दूर गगन में उड़ती चले
कभी-कभी निंदिया पंछी लगे ,कभी-कभी निंदिया पंछी लगे
वाह निंदिया के लिये कितने अनोखे उपमान चुने हैं आपने । सुंदर रचना ।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति , बधाई
ReplyDeleteअतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई के पात्र है
ReplyDeletepreeti ji aap to mere nanihal ki hai.....
asha joglekrji sarahne ke liye dhanyawad.anya rachnaon ko bhi waqt nikalkr zarur padhiyega.
ReplyDeleteaapki pratikriya mera margdarshan hai.
sunilji aap niyamit mere blog ko padhte hain.
ReplyDeletemain aapki aabhari hun.
sanjayji sarv pratham dhanyawad.
ReplyDeleteanya rachanayon pr bhi raushni daliyega.
aapki nanihal kahan hai vistar se likhiyega.