गर्मी से बेहाल धरा ने नतमस्तक गुहार किया
तब प्रसन्ना हो इन्द्रदेव ने बरखा का आगाज़ किया
छोटी बड़ी सभी बूंदों ने बिखरा दी छटा निराली
सोंधी-सोंधी खुश्बू प्यारी फिर महकी इस धरती पे
फूल पेड़ पंछी फिर चहके ऋतुराज का दिल भी बहके
मस्त पवन फिर धीरे-धीरे बरखा का आलिंगन करके
अरसे से प्यासी धरा के आँचल में बूंदों को भरके
इठलाके-बलखाके झूमकर भीगे
बच्चे ,बूढ़े सभी जन भीगे
रंग-बिरंगी छतरियों संग भीगे
कागज़ कि किश्तियों संग भीगे
तन भी भीगे- मन भी भीगे
इन्द्रधनुषी रंग में सब भीगे
बरखा के आनंद में भीगे
भीगे जन फिर जी लें
भीगे जन फिर जी लें .
फूल पेड़ पंछी फिर चहके ऋतुराज का दिल भी बहके
ReplyDeleteमस्त पवन फिर धीरे-धीरे बरखा का आलिंगन करके
अरसे से प्यासी धरा के आँचल में बूंदों को भरके
बहुत अच्छा चित्रण...बधाई
Veenaji aapko rachna bhaie,main dil se aabhari hun.umeed hai aapka margdarshan aage bhi milega?
ReplyDeleteSanjayji aapko meri kavita ruchi main aabhari hun.
ReplyDeleteavashya main aapke blog me dastak dungi.