अगर मैं घुंघरू होती माँ,छन-छन ,छन-छन करती माँ
पल-पल,पल-पल आनंद मैं भरती माँ
नाच के पेट भरती माँ,दुःख में भी मैं हंसती माँ
जब जी चाहे नचती माँ,दिल में सबके बसती माँ
तन का श्रृंगार मैं करती माँ,दरउसके जा मैं रहती माँ
घर सबके मन में करती माँ,सब लोगों को मैं हरती माँ
नट सम्राट के पग में सजती माँ,तुम देख मुझे खुद हंसती माँ
अगर मैं घुंघरू होती माँ,छन-छन,छन-छन करती माँ
पल-पल,पल-पल आनंद भरती माँ
अगर मैं घुंघरू होती माँ, अगर मैं घुंघरू होती माँ
सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना..घुंघरू से तुलना बहुत सुंदर शब्दों में..भावपूर्ण रचना के लिए आभार
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना के लिए आभार|
ReplyDeleteजितनी तारीफ़ की जाये कम होगी। घुँघरू की कल्पना मात्र ही तन-मन में तरंग पैदा करने वाली है।सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteघूंघरू नहीं पर तुम्हारे आगमन से रूनझुन तो होती है
ReplyDeleteबेटियाँ ही तो हैं जो प्रेम का बीज बोती हैं.
sunilji aapne kimti waqt nikala or meri rachna ko saraha ye aapka badappan hai.mere pas aapka shukriya ada karne ke liye alfaz km pd rahe hain.aapka margdarshan mera sambal hai.
ReplyDeletesanjay bhaskrji aapne meri jazbaton ko samjha or saraha..dhanyawad.aage bhi margdarshit karte rahiyega.
ReplyDeletev.k.pandeji aapne mere blog pr aakr meri kavita ko saraha main aabhari hun.
ReplyDeleteM vermaji bahut khoob kavita ka jawab kavita se,
ReplyDeletede kr aapne ye sabit kr diya ki aap bhi ek kushal
lekhak hain.meri shubhechchha.
patilji aapka aabhar.anya rachanayen bhi padhiyega.
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